गिरीश शर्मा " सफलता की कहानी "

जिनके अंदर सफल होने की हसरत हो और संघर्ष का हौसला जीवन में कभी भी कुछ भी उनके लिए असंभव नहीं रहता
ऐसी ही एक कहानी गिरीश शर्मा की है बचपन में ही अपना एक पैर गवाने के बाद भी उन्हें कभी अपने आप को कमजोर लाचार नहीं समझा और हमेशा सामान्य आदमी की तरह अपने जीवन को जीने का प्रयास किया और उसमें सफलता भी पाई है। आज उन्हीं की कहानी सफलता की कहानी आइए पढ़ते हैं ।

गिरीश शर्मा " सफलता की कहानी "

कहते हैं :-
कदम निरंतर चलते जिनके, श्रम जिनका अविराम है। विजय सुनिश्चित होती उनकी, घोषित यह परिणाम है।
यह पंक्तियां गिरीश शर्मा के ऊपर पूर्ण रुप से लागू होती है आपने बचपन से ही निरंतर अथक मेहनत कि और संघर्षपूर्ण जीवन से वह सफलता हासिल की जो आज एक सामान्य आदमी भी नहीं कर सकता है। इंसान जिंदगी में कुछ अच्छा करना चाहता है,सफलता पाना चाहता है लेकिन सफलता ना पाने के पीछे उसका कोई ना कोई बहाना होता है हर एक इंसान के अंदर कोई ना कोई कमजोरी होती है और वही कमजोरी उसके बहाने का रुप ले लेती है.आज मैं आपको जिस इंसान के बारे में बताने वाला हूं उसके बारे में जानकर आप हैरत में पड़ जाएंगे क्योंकि उनके पास एक पैर नहीं है फिर भी वह बैडमिंटन खेल में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं तो चलिए पढ़ते हैं गिरीश कुमार की जीवनी जो आपके जीवन को बदल सकती है.
गिरीश कुमार एक बैडमिंटन खिलाड़ी हैं जब ये 2 साल के थे तभी एक रेल दुर्घटना के कारण इनका एक पैर टूट गया था जिस वजह से वह सिर्फ एक पैर पर खड़े होकर बैडमिंटन खेलते हैं ये एक बहुत ही हैरानी की बात है की कोई भी व्यक्ति बैडमिंटन अपने दोनों पैरों पर खड़े होकर खेलता है तो भी उसको पसीने आ जाते हैं लेकिन वह एक पैर पर खड़े होकर बैडमिंटन खेलते हैं और जीतते भी हैं.वह बचपन में एक पैर ना होने के बावजूद भी फुटबॉल,क्रिकेट,बैडमिंटन जैसे खेल खेला करते थे.गिरीश शर्मा जी का कहना है कि उन्हें सामान्य बच्चों के साथ भी ये खेल खेलने में कोई भी परेशानी नहीं होती थी वह शुरू से ही एक पैर से खेल खेलने का अभ्यास निरंतर करते थे.
वह राजकोट में बहुत ही तेजी से साइकिल भी चलाते थे जिन्हें देखकर लोगों को बहुत ही हैरानी होती थी वह अपने आपको किसी भी तरह से कमजोर ना समझकर लगातार प्रयत्न करते थे इसी के साथ निरंतर अभ्यास करने के बाद उनमे परफेक्शन आ गई जब ये 16 साल के हुए तभी से उन्होंने एक बैडमिंटन बनने का फैसला कर लिया था इसके लिए उन्होंने बैडमिंटन का प्रशिक्षण भी लिया और इसके बाद उन्होंने नेशनल लेवल पर बैडमिंटन खेला जिसमें उन्होंने जीत हासिल की और 2 स्वर्ण पदक प्राप्त किए लेकिन वो वहीं पर नहीं रुके उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से इंटरनेशनल लेवल पर बैडमिंटन खेलने का फैसला किया इसके लिए उन्हें कुछ रुपयों की जरूरत थी.गिरीश शर्मा जी ने अपने दम पर रुपयों की व्यवस्था की और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बैडमिंटन खेला.वह बहुत से देशों में बैडमिंटन खेल चुके हैं.
गिरीश शर्मा हमारे लिए एक ऐसा उदाहरण है जो हमें प्रेरणा देते हैं कि जीवन में भलेही हमारे पास कोई कमजोरी हो लेकिन अगर हम दिल से चाहे और मेहनत करें तो जीवन में बड़ी से बड़ी कमजोरी हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगी और हम सफलता प्राप्त कर सकेंगे इसलिए हमें भी कभी अपनी कमजोरी को नहीं देखना चाहिए और लगातार प्रयत्न करना चाहिए हमें हमारी मंजिल जरुर मिलेगी,हम अपने सपनों को पूरा जरूर कर सकेंगे.गिरीश शर्मा जी वाकई में एक ऐसे जीते जागते उदाहरण हैं जिन्होंने आज की युवा पीढ़ी को एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि अगर सीने में आगे बढ़ने का हौसला हो तो बड़ी से बड़ी कमजोरी आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेगी. यकीनन महान है तो होते हैं ऐसे लोग जीवन में संघर्ष के द्वारा खुद तो सफल होते ही दूसरों को भी सफल होने की प्रेरणा देते हैं।
गिरीश शर्मा जी ने जब बैडमिंटन खेलने का सपना अपने दोस्तों को,अपने परिवार वालों को बताया होगा तो जरूर ही उन्होंने उनका मजाक उड़ाया होगा क्योंकि ये एक अजीब सी बात होती है की जिस व्यक्ति को सही से चलते हुए ना बने वो बैडमिंटन गेम कैसे खेल सकता है लेकिन सभी के कहने पर भी वो नही रुके.इसके बावजूद भी गिरीश शर्मा जी ने अपने हौसले और अपनी लगातार किए हुए प्रयत्न से एक बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की और इनको अभी और भी आगे जाना है.दोस्तों हम सभी को भी इनसे प्रेरणा लेकर इनकी तरह कुछ खास करना चाहिए।

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