मदद
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सोहन अपने परिवार के आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण बहुत दुखी था। समय पर घर का खर्च भी पिताजी नहीं चला पा रहे थे।दिनों दिन परिवार परेशानियों से गिरता जा रहा था। सोहन इस वर्ष बारहवीं कक्षा अंग्रेजी विषय के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर चुका था। अब उसके मन में केवल यही ख्याल था कि अपने परिवार की लाठी कैसे बने। जिसके सहारे मेरा परिवार आगे बढ़ जाए। लेकिन रोजगार मिलना आज के जमाने में किसी अलादीन के चिराग के समान है। सोहन ने बचपन से लोगों आपके मुंह से मुंबई जाने और वहां फिल्मों में काम करके सफल होने की बहुत सारी कहानियां सुन रखी थी। इसीलिए सोचा क्यों नहीं मुंबई जाकर किसी फिल्म से जुड़े और अपने परिवार की आर्थिक हालत को सुधारे। इसी सोच में लगा था। उसी समय उसकी 12 वीं की छात्रवृत्ति 2000 मिल गई। मोहन को लगा क्या उसका काम बन गया। इतने में तो मुंबई जाकर कुछ ना कुछ कर ही लेगा। शाम को जब पिताजी काम से लोटे तो पूरे थके हारे थे। आते ही खटिया पर लेट गए । पूरा एक घंटा खटिया पर निढाल होकर खड़े रहने के बाद छोटी बहन ने आवाज दी। "पापा उठो हाथ मुंह धो लो गर्म पानी रख दिया है आपके लिए और उसके बाद रोटी भी बन गई है गरम-गरम खा लो।" सोहन के पिता जी उठे और धीरे-धीरे बाहर जाकर हाथ पैर धोने लगे। सोहन की माताजी खाना खाने के लिए उनकी राह देख रही थी। सोहन के पिता जी खाना खाने बैठे सोहन और सोहन की बहन भी उनके साथ बैठे थे। खाना सब चुपचाप खा रहे थे। एक प्रकार से सन्नाटा सा पूरे घर में छाया हुआ था। सन्नाटे को तोड़ते हुए सोहन ने कहा "पापा कल सुबह में 7:00 बजे वाली ट्रेन से मुंबई जा रहा हूं। सोच रहा हूं वहां कुछ काम करके आपकी मदद करू।" यह सुनते ही सोहन के पिताजी ने कहा "अरे बेटा अभी तो तुम्हारी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई है और तू हमको छोड़कर इतना दूर जाएगा। हमसे नहीं रहा जाएगा " सोहन की मां भी विचलित हो गई थी। मां बोली "बेटा तेरे पिताजी दिन भर मेहनत करते हैं, इसमें हमारा गुजारा नहीं होता है। लेकिन रोटी खाकर दिन तो निकल ही रहे हैं । जब तुम्हारी पढ़ाई पूरी हो जाएगी और तुम्हारी कोई अच्छी सी नोकरी लग जाए तो हम सब आराम से रहेंगे।" सोहन बोला "मां जमाने में नौकरियां केवल पढाई से नहीं मिलती पढ़ाई के साथ साथ व्यवसायिक डिग्रियां भी होना चाहिए और वह मेरे पास नहीं है। इसलिए मां मुझे लगता है कि मुझे अब आगे नहीं पढ़ कर अपने पिताजी की मदद करना चाहिए।" पास बैठी सोहन की बहन भी उदास हो गई थी। क्योंकि 4 जन का परिवार था और उसमें भी एक जो घर की बुनियाद था। घर से बाहर जाने की बात कर रहा था। बहुत देर तक सन्नाटा फिर पसर गया। इससे आगे किसी ने कुछ नहीं कहा सोहन ने हीं फिर सन्नाटे को तोड़ते हुए कहा " मां पिता जी यह मेने बड़ा सोच समझ कर लिया गया फैसला है आप इंकार मत करना" पिताजी बोले "बेटा अकेले तुम कैसे जाओगे कहां काम ढूंढोगे " सोहन बोला " कुछ तो करना ही पड़ेगा वरना मुझ से आपकी यह कमरतोड़ मेहनत और परिवार की हालत देखी नहीं जाती।" पूरे घर में फिर सन्नाटा छा गया। अबकी बार कोई कुछ नहीं बोला क्योंकि इस सवाल का उत्तर किसी के पास नहीं था कि आखिर घर चलाया जाए तो कैसे चलाया जाए। सुबह-सुबह जल्दी से सोहन उठा और अपने ₹2000 जो छात्रवृत्ति के मिले थे। जेब में रखे और एक कुछ सामान एक बोरे में भरकर स्टेशन पर पहुंच गया। सोहन ने मुंबई की टिकट ली और ट्रेन में बैठ गया। मुंबई में लगभग 15 दिनों तक गली - गली मोहल्ले -मोहल्ले की बाजार- बाजार की खूब खाक छानी मगर उसे कोई काम नहीं मिला। ऊपर से जहां उसने कमरा किराया लिया था। उससे भी पैसा देना था। अब तो मकान मालिक भी तंग करने लगा था। ₹2000 कहां तक चलते हैं, धीरे-धीरे सारे पैसे खत्म हो गए और अब नौबत यह थी कि आज उसकी जेब में एक भी पैसा नहीं था। सुबह से चल रहा था। कहीं कोई काम मिल जाए। लेकिन कहीं काम ना मिला। मारे पानी की प्यास और भूख से उसका दम निकल रहा था। जेब में एक पैसा नहीं था। अब क्या कर सकता है। मुंबई जैसे बड़े शहर में न कोई जान पहचान यकायक उसके दिमाग में आया क्यों ना मैं सोशल मीडिया से अपने मित्रों से सहायता मांगू। उसने सोशल मीडिया के अपने ही जिले के कटनी के एक दोस्त से संपर्क किया और उसे कहा "अमित मुझे 300 रुपए दे दो मेरे पास पैसे नहीं है और मैं बहुत परेशान हूं घर आने के बाद तुम्हारे जैसे चुका दूंगा। हम दोनों ने हायर सेकेंडरी एक ही साथ उत्तीर्ण की हैं। मेरा नाम सोहन है कक्षा 12 में हम दोनों साथ-साथ पढ़ते थे ।" अमित पहचान गया था ,सोहन अच्छा लड़का है। लेकिन ₹300 उसके पास भी नहीं उसने अपने पापा को बताया कि "मेरा दोस्त है जो मुंबई में है और उसके पास पैसे नहीं है। ₹300 मांग रहा है क्या करूं।" अमित के पापा अनिल श्रीवास्तव पेशे से शिक्षक और परोपकारी व्यक्तित्व थे। दूसरों की मदद करना उनके व्यवहार में ही था।उन्होंने कहा "ठीक है बेटा मेरी बात कराओ" अमित ने सोहन को फोन लगाया और उसके पापा की बात करवाई अमित के पापा बोले "हां सोहन बेटा बताओ क्या समस्या है" सोहन ने कहा "श्रीमान जी मैं मुंबई में काम के लिए आया था लेकिन मुझे काम नहीं मिला और मेरे पास जो पैसे थे वह भी खत्म हो चुके हैं अब मेरे पास खाना खाने घर आने तक नहीं यदि आप मुझे ₹300 दे देंगे तो मैं घर पहुंच जाऊंगा और वहां आकर आपके पैसे दे दूंगा। अगर 300 न दे सके तो ₹50 ही दे दो कम से कम मैं आज खाना तो खा लूंगा।" कहते कहते सोहन का गला भरा गया" अमित के पापा भी सोच में पड़ गए। लेकिन दूसरे ही पल अमित के पापा ने कहा की "व्यवस्था करता हूं और अपने अकाउंट नंबर भी दे दो तुम्हारे लिए कुछ पैसे भी अकाउंट में डाल देता हूं।" सोहन ने अपना अकाउंट नंबर व्हाट्सएप करने को कहा कुछ समय में व्हाट्सएप भी कर दिया। थोड़ी समय में उसके खाते में ₹500 आ चुके थे। साथ ही साथ व्हाट्सएप पर ट्रेन का टिकट भी सोहन खुश हो गया वह सीधे अपने मकान वाले के पास पहुंचा और उसने कहा श्रीमान जी मुझे काम नहीं मिला है और मैं घर जा रहा हूं। मैं घर जाकर तुम्हारे पैसे की व्यवस्था कर पहुंचा दूंगा। मकान मालिक भड़क गया उसने कहा नहीं मुझे पहले 1 महीने के पैसे दो उसके बाद ही तुम जा सकते हो। सोहन के माथे पर बल पड़ गए अब क्या करें। उसने पुनः अमित के पापा से बात की और उन्हें बताया कि मकान मालिक मुझे नहीं आने दे रहा है 1 महीने का पूरा किराया मांग रहा है।अमित के पापा ने मकान मालिक से बात की और उसका किराया भी दे दिया। इस तरह सोहन कटनी रेलवे स्टेशन पर उतरा और उतरते ही सबसे पहले अमित के पापा को फोन लगाया। सोहन फोन में बोला " हां श्रीमान जी आप कहां हैं मुझे आपसे मिलना है" अमित के पापा ने कहा "नहीं बेटा अभी तुम घर जाओ और उसके बाद जब कभी तुम्हारे पास पैसे की व्यवस्था हो जाए तो मुझे आकर दे देना "सोहन बोला "पैसे तो मैं घर जाकर ही आपको पहुंचा पाऊंगा लेकिन मैं पहले आपके दर्शन करना चाहता हूं आप मेरे लिए भगवान हो। मुंबई जैसे शहर में किसी ने मेरी कोई मदद न की। लेकिन आपने मेरी इस स्थिति को समझा और जान पहचान ना होने के बाद भी मुझे इतना बड़ा सहयोग किया कि आज मैं अपने घर तक सुरक्षित पहुंच सका हूं।" अमित के पापा बोले "नहीं बेटा मैं कोई भगवान नहीं हूं यह तो तुम्हारा बड़प्पन है जो मुझे भगवान का दर्जा दे रहे हो" लेकिन मन ही मन ऐसी खुशी अमित के पापा को मिली थी जो मानव जीवन में आने के बाद हर किसी को दूसरे की मदद करके मिलती है। अमित भी अपने पापा के इस सराहनीय और नेक कार्य पर गदगद हो गया था। अमित के पापा बोले "बेटा जीवन में यदि किसी के भी तुम काम आ सको तो ऐसा कोई मौका मत छोड़ना क्योंकि जो दूसरों की मदद करता है ईश्वर से हम उसकी मदद करते हैं " अमित ने अमित के पापा को बड़े ही सम्मानजनक दृष्टि से देखा और उनके पैरों में झुक गया। अमित के पापा ने उसे उठाया उसके कंधे पर हाथ रखकर दोनों घर के अंदर आ गए। वही सोहन अब अपने पिताजी के साथ बाजार में रोज मजदूरी करने जाने लगा था। उसकी ईमानदारी और उसकी मेहनत ने पिताजी के बोझ को हल्का कर दिया था। अब दोनों मिलकर परिवार का खर्चा चलाते थे। बीच-बीच में कुछ पैसे भी सोहन और उसके पिताजी ने कुछ बचाते हुए अमित के पापा से लिए हुए पैसों की व्यवस्था कर ली। एक दिन समय निकाल कर पाकर सोहन अमित के पापा के पास पहुंचा। उन्हें अपने दिए हुए पैसे लौटा दिए। सोहन और अमित के पापा एक दूसरे को देख कर बहुत खुश हुए। सोहन ने कहा अगर उस दिन आप मेरी मदद नहीं करते तो शायद मैं आज अपने घर तक ना पहुंच पाता। अमित के पापा भी खुश हो गए थे। उन्होंने कहा "बेटा यदि जीवन में तुम्हें भी कभी किसी की मदद का मौका मिले तो जरूर करना ।मदद चाहे जितनी हो छोटी लेकिन करना जरूर क्योंकि दूसरे की मदद करने में जो खुशी मिलती है ना, वह किसी भी धन-दौलत संपत्ति और ऐश्वर्य में नहीं मिलती।" कहते हुए अमित के पापा ने अपना बैग उठाया और अपने ऑफिस के लिए निकल गए। जाते-जाते अमित के पापा बोले "हां बेटा सोहन खाना जरुर खा कर जाना" अमित पास ही खड़ा था दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा दिए और फांसी लगे सोफे पर बैठ गए।
चतरसिंह गेहलोत
9993803698
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